चुनाव विशेष



समाजवाद का उदय : चुनाव पूर्व महा सर्वेक्षण, जानिए जनता का रुख


543 सीटों के लिये महासंग्राम शुरू, त्रिशंकू लोकसभा की तस्वीर उभरने की संभावना

प्रभात त्रिपाठी

7 रेसकोर्स में मुलायम सिंह के पंहुचने की प्रबल संभावनाए,

मोदी का रथ खुद भाजपा के शीर्ष नेताओं की कलह व यूपी में गलत टिकट वितरण को लेकर रूका। 2016 तक फिर होगा लोकसभा चुनाव

एनडीए को 215 सीटे व यूपीए को 155 सीटे मिलने की संभावना,अन्य दलों को 173 सीटे मिलने की संभावना

एनडीए गठवंधन सबसे बड़ा दल लेकिन सत्ता से दूर

एनडीए की सरकार में चुनाव परिणाम बाद मुखिया के बदलने की संभावना, नये सहयोगी अगर एनडीए में जुडेगें तो सुषमा और राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे।

यूपी में 80 सीटों के लिये कैसी होगी किस दल की तस्वीर किसका होगा पलडा भारी

भाजपा-सपा में मुख्य मुकावला, टिकट के गलत वितरण से भाजपा 50 सीटों से 30 सीटों पर सिमटी

भाजपा को अब 29 से 32 सीटें मिलने की संभावना

सपा को अप्रत्याशित बढ़त मिलने की संभावना

मुख्यमंत्री अखिलेश के विकास और कुशल नेतृत्व तथा मुलायम सिंह के जुझारू तेवरों के कारण सपा ने अपनी स्थित मतदान पूर्व सुधारी

इस बार फिर सपा चुनावीं सर्वेक्षणों को पीछे छोडते हुये चैकाने वाले परिणाम देगी।

सपा 26 से 30 सीटें जीतने की स्थित में पंहुची।

बसपा को 14 से 16 सीटें मिलने की संभवना।

कांग्रेस को 6 से 8 सीटे मिलने की संभावना।

लोकदल को दो सीटे मिलने की संभावना

अन्य को एक सीट मिलने की संभावना।

यूपी में भाजपा सपा का सीधा मुकावला

लखनऊ । लोकसभा चुनाव महासंग्राम 2014 अब अपने अंतिम चरण पर है। पहले चरण के मतदान पूर्व हिन्दी दैनिक समाजवाद का उदय ने समस्त भारत में पांच हजार मतदाताओं से मतदान पूर्व जो सर्वेक्षण सभी राजनेतिक दलों के लिये किया है वह अब काफी चैकाने वाला प्राप्त हुआ है। टिकट के अंतिम वितरण के बाद जो तस्वीर पूरे भारत में उभर कर सामने आ रही है वह अब त्रिशंकू लोकसभा की मिल रही है। किसी की लहर नहीं चल रही हैं। उत्तर भारत में अगर मोदी की लहर चल रही है तो दक्षिण भारत में कांग्रेस की नीतियों का उसे फायदा मिल रहा है। वहीं मध्य भारत में क्षेत्रीय दल अपनी-अपनी सरकारों के विकास कार्यो के कारण तेजी से उभर कर सामने आ रहे है। 543 सीटों के इस महासमर में एनडीए गठवंधन को 215 सीटें मिलती नजर आ रही है।

वहीं यूपीए गठवंधन की स्थित में धीरे-धीरे सुधार हुआ है। उसे अब 155 सीटें मिलती नजर आ रही है। वहीं अन्य दलों को यानी (तीसरे मोर्चे) को पूरे देश में जिसमें क्षेत्रीय दल भी शामिल है 173 सीटें मिलती दिखाई दे रही है। सबसे बड़े राज्य जहाॅ से 7 आरसीआर की दौड़ पूरी होती है उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में एक समय 50 सीटों तक दिखाई दे रही भाजपा को करारा झटका लगा है।पार्टी की आपसी कलह व गलत टिकट वितरण के कारण भारतीय जनता पार्टी को अब 29 से 32 सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। अभी तक सभी चुनावी सर्वेक्षणों में सपा को 8 से 15 सीटों तक सभी चैनलों द्वारा जो गलत तस्वीर दिखाई जा रही है उसे समाजवादी पार्टी ने काफी पीछे छोड़ दिया है। देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दो साल के कामकाज व सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह के जुझारू तेवरों और उनके द्वारा बीच-बीच में चुनावी दाॅवपेच कसने तथा टिकट के सही वितरण के कारण समाजवादी पार्टी ने अपनी पार्टी की मिलने वाली सीटों में भारी इजाफा कर लिया है। मतदान पूर्व सपा ने चुनावी सर्वेक्षण में जमीनी आधार मजबूत करके एक अप्रत्याशित बढ़त हासिंल करने की संभावनाए बना ली है। अब समाजवादी पार्टी को 26 से 28 सीटें मिलने की संभावना दिखाई दे रही है।

पूरे देश में भाजपा,कांग्रेस के बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी 26 से 28 सीटें लेकर तीसरे नम्बर की पार्टी बनने जा रही है। मुलायम के बाद ममता व बामपंथी दलों की संख्या राष्ट्रीय स्तर आ सकती हैं। ममता को 24 व बामपंथी दलों को 22 सीटें मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। यूपी में तीसरे नम्बर की पार्टी बसपा होगी जिसे 15 से 18 सीटें मिलती दिखाई दे रही है। चैथे नम्बर पर कांग्रेस को सिर्फ 6 से आठ सीटें मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। वहीं लोकदल को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ सकता है। अन्य दल को एक सीट मिलती दिखाई दे रही है।

यूपी से 7 रेसकोर्स का रास्ता तय होता है। इस प्रदेश से भाजपा के नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह कांग्रेस की श्रीमती सोनिया गांधी,राहुल गांधी व सपा के मुलायम सिंह व बसपा की सुश्री मायावती अपने-अपने राजनेतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव लड रहे है। लोकसभा चुनाव 2014 इन सभी राजनेतिक दलों के नेताओं की आने वाली राजनेतिक किस्मत को भी तय करने जा रहा हैं। जनता के बीच कौन पास होगा कौन फेल होगा इसका फैंसला तो 16 मई को दोपहर तक हो जायेगा। लेकिन यह तय है कि 7 रेसकोर्स में पंहुचने के लिये किसी एक दल का बहुमत वाला प्रधानमंत्री नहीं बैठेगा। मतदान के परिणाम के बाद सरकार बनाने की कबायद में यूपी से सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव की अहम भूमिका होने जा रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के 23 सांसद होने के बाबजूद यूपीए-2 का गठन कांग्रेस के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण सपा के लिये नगण्य हो गई थी लेकिन इस बार कांग्रेस की यूपीए का हाल बुरा होने के कारण कांग्रेस किसी भी सूरत मेें एनडीए की सरकार को रोकने के लिये अन्य दलों के नेताओं में से किसी एक नेता को 7 रेसकोर्स भेज सकती है। जिसमें मुलायम सिंह की प्रबल संभावना है। मुलायम के बाद तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, तमिलनाडू से सुश्री जयललिता व बसपा से सुश्री मायावती की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। मुलायम सिंह व मायावती किसी भी सूरत में एनडीए की सरकार को केन्द्र में समर्थन देकर नहीं बनने देगें। वहींे जेडीयू व बीजू जनता दल तथा अन्य कई छोटे-छोटे राजनेतिक दल धर्मनिरपेक्ष वोट लेने के कारण एनडीए के खेमें से अपने-अपने राजनेतिक कारणों से दूर रहने की कोशिश करेगें ऐसी स्थित मंें केन्द्र में अल्पमत की सरकार का गठन होने की संभावना दिखाई दे रही है।

एनडीए सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने जरूर आ रहा है लेकिन उसे कुछ नये सहयोगी तलाशने होगें ऐसी स्थित में जेडीयू से लेकर कई अन्य छत्रप मोदी के नाम पर एनडीए में नहीं जायेगें ऐसी संभावना प्रबल है। नये सहयोगियों के कारण एनडीए को अपना पूर्व घोषित प्रधानमंत्री पद मोदी के नाम की कुर्वानी देकर कोई नये चेहरे को सामने लाना होगा जिससे धर्मनिरपेक्ष दलों के नाम पर चुनाव लड़कर दिल्ली पंहुचने वाले दल एनडीए को समर्थन दे सके। ऐसी स्थित में राजनाथ सिंह व सुषमा स्वराज भाजपा के नये चेहरे हो सकते है। यूपीए-3 का गठन केन्द्र की सत्ता में दूर की कौड़ी माना जा रहा है। लेकिन राजनीति में किसी को खारिज नहीं किया जा सकता। कब क्या हो जायेगा यह कहना भी संभव नहीं है। लेकिन यूपीए-3 की संभावना तभी संभव है जब यूपीए अपनी स्थित मतदान के पहले और सुधारे और लगभग 200 सीटों के आंकड़ो के आसपास पंहुचे लेकिन इसकी संभावना कम दिखाई दे रही हैं।

पिछले एक माह तक मोदी की जो लहर देश में दिखाई दे रही थी वह अब मतदान तक धीमी होती जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश मेें मोदी को हिन्दुत्ववादी चेहरे के कारण अगर कुछ राज्यों में फायदा हो रहा है तो कुछ राज्यों में नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। करीब 300 सीटों में भाजपा ने अपना दाॅव मोदी के नाम पर चला था लेकिन उनका यह हिन्दुत्ववादी कार्ड सिर्फ 150 सीटों पर ही चलता दिखाई दे रहा है। हिन्दी वेल्ट राज्यों में भाजपा को मोदी की लहर का फायदा मिलता दिखाई दे रहा है। यूपी जैसे बड़े राज्य में जिस तेजी से भाजपा ने अपने पाॅव पसारे थे और एक समय 50 से 55 सीटों पर आज से 15 दिन पूर्व भाजपा खड़ी दिखाई दे रही थी उसे करारा झटका पार्टी के नेताओं की आपसी कलह व गलत टिकट वितरण तथा बाहरी लोगों को लोकर यूपी से चुनाव मैदान में उतारने के कारण बड़ा झटका माना जा रहा है। यूपी में भाजपा का मुख्य मुकावला समाजवादी पार्टी से अब होता दिखाई दे रहा है। यूपी की 80 सीटों पर हो रहे महासंग्राम में सपा-बसपा में भी कुछ सीटों पर सीधी लड़ाई देखी जा रही है। लेकिन अधिकतर सीटों पर भाजपा व सपा की ही लड़ाई होती दिखाई दे रही है।

पूर्वाचंल में सपा को चुनाव सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों ने उसे पूरी तरह से दौड़ से बाहर दिखाया है लेकिन उक्त पत्र के सर्वेक्षण में मुलायम सिंह के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने तथा अखिलेश द्वारा किये गये विकास कार्यो से उसकी स्थित सुद्रण होती दिखाई दे रही है। पूर्वाचंल की 34 सीटों में अब सीधे-सीधे लड़ाई भाजपा और सपा की होती दिखाई दे रही हैं। यहाॅ से भाजपा को 14 सपा को 12 व बसपा को 6 व कांग्रेस को दो सीटे मिलती दिखाई दे रही है। सपा की मध्य क्षेत्र में अच्छी स्थित दिखाई दे रही हैं। यहाॅ की 12 सीटों में से 7 सीटें सपा को मिलती दिखाई दे रही है। बसपा-भाजपा को दो-दो सीटे व कांग्रेस को एक सीटें मिलती दिखाई दे रही है। वहीं बुन्देलखण्ड की कुल चार सीटों में से बसपा को दो और भाजपा तथा सपा को एक-एक सीट मिलती दिखाई दे रही है। यहाॅ से कांग्रेस का सफाया माना जा रहा है। पश्चिम की 28 सीटों में भाजपा की स्थित काफी मजबूत दिखाई दे रही हैं। उसे वहाॅ से करीब 15 सीटें मिलने की संभावना हैं। सपा को आठ व बसपा को दो सीटे मिलने की संभावना है। लोकदल को दो सीटों से संतोष करना पड़ सकता है। कुल मिलकार यूपी का चुनाव परिणाम काफी चैकाने वाला साबित होने जा रहा है। सपा की स्थित को जिस तरह से चुनावी सर्वेक्षणें ने काफी कमजोर आंक कर दिखाया था वह पूरी तरह से एक साजिश के तहत माना जा सकता है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी की कड़ी मेहनत व सभी वर्गो के लिये किये गये कामकाज की समीक्षा में खरा उतरने से यूपी में जनता किसी भी सूरत में सपा को दिल्ली की गद्दी में देखना चाहती है।

मोदी लोकसभा चुनाव के बाद फिर गुजरात चले जायेगें? इस बात की चर्चा उनकी काशी की सीट में मतदान पूर्व तेजी से चल रही है। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह गाजियाबाद से छोड़कर टंडन का टिकट काटकर लखनऊ से चुनाव क्यों लड रहे है इसको लेकर भी चर्चाए काफी गरम है। राजनेतिक पंडित राजनाथ सिंह का चुनाव काफी फंसा हुआ मान रहे है। इस सीट पर कांग्रेस की प्रत्याशी रीता जोशी बहुगुणा के बढि़या चुनाव लड़ने की बात कहीं जा रही है। जो अपनी सीट निकाल भी सकती है इसकी चर्चा भी राजधानी के नुक्कड चैराहो पर चल रही है। इसी तरह से पूरे यूपी में भाजपा के कुछ और नेता स्थानीय कारणों से अपनी-अपनी सीटें गंवाने की स्थित में दिखाई देने लगे है।

केन्द्र में बढ़ती मंहगाई व भ्रष्टाचार का मुद्दा यूपी में दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। यहाॅ का मतदान यूपी सरकार के विकास और स्थानीय नेताओं द्वारा जनता की की गई उपेक्षा को लेकर होने जा रहा है। किसी नेता की लहर नहीं चल रही है। मोदी की हवा सिर्फ चैनलों में दिखाई दे रही है। इस बार का चुनाव फिर जातिवाद के बीच होता दिखाई दे रहा है। इस बार का चुनाव हिन्दुत्व बनाम मुस्लिम के बीच जरूर मजबूती से होता दिखाई दे रहा हैं। जातिगत आधार पर पड़ने वाला बोट इस बार काम के आधार पर भी पडने जा रहा हैं। ग्रामीण क्षेत्र में बिजली,पानी किसानों को मिलने वाली सुविधा व सड़क तथा बेरोजगारी भत्ता व लेपटाॅप वितरण को देखते हुये भी होता दिखाई दे रहा है। मतदाता इस बार अपने मत का सही निर्णय लेने जा रहा है। सत्तारूढ समाजवादी पार्टी को इसका सीधा-सीधा सभी सीटों पर लाभ मिलता दिखाई दे रहा है।

कुल मिलाकर ‘‘समाजवाद का उदय’’ समाचार पत्र व डाॅट काॅम ने अपने रिपोर्टरों से सभी 70 जिलों में करीब पांच हजार मतदाताओं से पिछले तीन माह से जो चुनाव सर्वेक्षण कराया है उसमें मतदान पूर्व 28 मार्च 2014 तक जो तस्वीर तेजी से बदल कर सामने आई है वह भाजपा के लिये काफी चैकाने वाली कमजोर साबित मानी जा रही है। क्योकि भाजपा को हमेशा की तरह इस बार भी जातिगत आधार पर टिकट वितरण व सही सीट के चयन न होने का आघात लगा है। ठाकुर ब्राहम्मण जाति का मतदाता भले ही भाजपा की तरफ इस बार मुखातिब हुआ है लेकिन उसे पूरी तौर पर भाजपा में नहीं मिलता दिखाई दे रहा है। इस लिये कई सीटों पर भाजपा की स्थित दूसरे नम्बर पर आती दिखाई दे रही है। सपा बसपा ने भी इन जातियों पर अपना प्रभाव डाला है। लेकिन यह प्रभाव कितना डाल पाये है यह पूरी तौर पर नहीं कहाॅ जा सकता। मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के पक्ष में जायेगा ऐसा कहाॅ जा रहा है। बसपा भी मुस्लिम मतों पर नजर गडाये हुये है। कंाग्रेस की स्थित कमजोर होने के कारण मुस्लिम मतदाता अपना निर्णायक वोट खराब नहीं करेगा ऐसा माना जा रहा है। मुज्जफरनगर दंगे का दंश भले ही लोग समाजवादी पार्टी में लोग पड़ता बता रहे है लेकिन ऐसा नहीं है। सपा को इसका कोई नुकसान होता नहीं दिखाई दे रहा है। दंगों से भाजपा और सपा की सीटे कम होती नहीं दिखाई दे रही हैं। इन दो दलों के बीच वोट पोलराइज हुआ है। हिन्दू मतदाता भाजपा में व मुस्लिम मतदाता सपा में पूरी तरह से जाता दिखाई दे रहा है। इसका नुकसान कांग्रेंस व लोकदल को ब्यापक रूप से हुआ है। जाट मतदाता भाजपा व सपा के साथ जाता दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर यूपी की तस्वीर अब बदल चुकी है। एक समय जहाॅ एक तरफा बढ़त भाजपा 50 से 55 सीटें लेती दिखाई दे रही थी उसमें गिरावट आई हैं। इसमें सपा ने अचानक पूर्वाचंल व पश्चिमी छेत्रों में अपनी 15 सीटों में पकड़ तेज की है। यूपी में सपा को सबसे कमजोर कड़ी बताया जा रहा था जो चैनलों की एक साजिश के रूप में माना जा सकता है। मेरा पक्के तौर पर दावा है कि समाजवादी पार्टी प्रदेश की नम्बर दो की पार्टी बनकर उभरेगी सपा की भाजपा से कुछ सीटें ही कम होगी। कांगं्रेस चैथे नम्बर पर कायम रहेगी। मायावती को इस बार अपनी पुरानी सीटों की संख्या से कुछ झटका लग सकता है। लेकिन उसकी संख्या भी 14 से 16 के बीच रह सकती है। मायावती की चुप्पी कोई ऐसा करिश्मा यूपी में नहीं करने जा रही है जिसकी लोगों को उम्मीद है। यूपी की जनता में अभी भी मूर्तियाॅ लगवाना तथा कई घोटाले करने की तस्वीर बसपा के रूप में सामने दिखाई दे रही है। इस लिये मायावती पर मतदाता कोई कार्ड खेलने जा रहा है ऐसा समझ से बाहर है। बसपा को सिर्फ काननू ब्यवस्था के मुद्दे पर कुछ फायदा जरूर हमेशा मिलता है लेकिन इस बार का चुनाव विकास के मुद्दे पर होगा ऐसा माना जा रहा है। सपा को कानून ब्यवस्था पर बसपा हमेशा घेरती है यह मतदाता अब समझ गया है। मतदाता जानता है कियह चुनाव केन्द्रीय चुनाव है। इस लिये केन्द्र में कौन अपनी सरकार बनायेगा और उसके नजदीक कौन जा सकता है इस पर यूपी की जनता विकास के नाम पर इस बार फैंसला करने जा रही है जिसका फायदा स्थानीय स्तर पर सपा की अखिलेश सरकार के कामकाज की समीक्षा को लेकर मिलता दिखाई दे रहा है।

16 मई के बाद उक्त सर्वेक्षण का सच देश व खासतौर पर यूपी की जनता के सामने आ ही जायेगा। मैरा यह चुनावी सर्वेक्षण कोई ऐसा सर्वेक्षण नहीं है जो पूरी तरह से प्रायोजित हो जो अब तक के चैनलों में होता आया है। चैनलों के सर्वेक्षणों पर भी कई सवालियें निशान पिछले दिनों लग चुके है जिससे सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म होती जा रही है। पैड चुनाव विषलेशक चैनलों में रोज शाम को बैठ कर देश के मतदाताओं की भावना से खिलवाड करते रहते है और उनकी राजनेतिक दलों का पोस्टमार्टम करने की आदत सी बन गई है। करोड़ो रूपये डकार कर भी गलत तस्वीर पेश करने की उनकी आदत हो गई है। कौन तेज चैनल होगा इसकी होड़ में मीडिया पर सवालिये निशान भी देश में इन चैनलों के मालिकों ने खड़े कर दिये है। मेरा साफ मानना है कि इन चैनलों को हजारों-हजारों करोड़ रूपये देकर यह राजनेतिक दल अपनी साख खुद गिरवा रहे है। इसके जिम्मेदार यह नेता भी है। इस पर गंभीरता से सोचना होगा। क्योकि पैसे की चाहत और पैसे की लम्बी कीमत़ को लेकर गलत प्रायोजित तौर पर सर्वेक्षण किये जा रहे है जिसका असर मतदान पूर्व मतदाताओं पर गलत पड़ता है इस लिये मेरा साफ मानना है कि इस तरह की परम्परा को राजनेतिक दलों को ही रोकना पड़ेगा। प्रिट मीडिया के बड़े समूह के समाचार पत्रों व छोटे समाचार पत्रों को पैसा भी नहीं मिलता और वह लोग मतदाताओं को सच का सामना भी रोज सुबह चाय के साथ कराते है और उनकी साख लगातार बनी हुई है इस पर राजनेतिक दलों के बड़े नेताओं को सोचना होगा कि वह किस मीडिया का चयन करे और किसे बाहर करे। मेरा साफ मानना है कि जिस राजनेतिक दल ने देश व प्रदेश की जनता के बीच विकास और तरक्की तथा कोमों को जोड़ने का काम किया होगा उसे मतदाताओं का मत मिलेगा इस मुद्दे को लेकर उसे चुनाव मैदान में जाना चाहिये न कि चैनलों पर हजारों करोड़ रूपये लुटा कर इंडिया साइनिंग का नारा देकर? इससे देश का मतदाता गुमराह होता है। इस पर वह सभी राजनेतिक दल सोचे जो अपनी लहर चैनलों में देख रहे है। पैड सर्वेक्षण से दूर यह सर्वेक्षण यूपी के पंाच हजार मतदाताओं की आवाज है। भले उक्त समाचार पत्र एक बड़ा समाचार पत्र नहीं है। संशाधन विहीन समाचार पत्र सच की आवाज को जनता के बीच ला रहा है। 16 मई के बाद निष्पक्ष रूप से किये गये सर्वेक्षण की कसौटी पर इस सर्वेक्षण को आॅका जा सकता है। इन्तजार कीजिये 16 मई की देर रात का।