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धर्मशास्त्र के मतानुसार मौनी अमावस्या का महत्व

सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, एवं प्रयाग इन चार प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर पूर्ण कुंभ पर्व का आयोजन होता है । उज्जैन तथा नासिक को छोड़कर केवल हरिद्वार तथा प्रयाग में पूर्ण कुंभ के साथ ही प्रत्येक छठवें वर्ष में अर्ध कुंभ का आयोजन होता है । इस वर्ष माघकृष्ण सोमवार 4 फरवरी 2019 ई. को प्रयाग में अर्ध कुंभ का आयोजन होगा । वर्ष 2019 की पहली सोमवती अमावस्या और अर्धकुंभ के शाही स्नान का दुर्लभ योग बन रहा है। यह पर्व अपने आप में विशेष महत्त्व रखता है।

माघमास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या मौनी अमावस्या के रूप में प्रसिद्ध है । इस पवित्र तिथि पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण पूर्वक स्नान-दान करने का विशेष महत्व है । मौनी अमावस्या के दिन सोमवार का योग होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है । इस दिन त्रिवेणी अथवा गंगा तट पर स्नान-दान की अपार महिमा कही गई है । मौनी अमावस्या को नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला आदि का दान करना चाहिए । आज के दिन साधु, ब्राह्मणों तथा महात्मा के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करना चाहिए एवं उन्हें कंबल आदि भी अवश्य देनी चाहिए । आज के दिन काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिए और उसको भी दान में देना चाहिए । शास्त्र सम्मत है कि ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए । स्नान-दान आदि पुण्य कर्मों के अतिरिक्त आज के दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है । ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन स्नान-दान करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं तथा मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है ।

इस बार अर्ध कुम्भ होने से यह और भी अधिक विशेष फलदाई बन गया है। ऐसी परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भँवरी दी जाती है। उसके बाद सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, भोजन सामग्री इत्यादि की भँवरी दी जाती है। भँवरी पर चढ़ाया गया सामान किसी सुपात्र ब्रह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है। अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में वह दान नहीं देना चाहिए। इस बार कुंभ स्नान में दूसरे शाही स्नान पर महासंगम हो रहा है। ऐसी मान्यता है कि यह दुर्लभ योग 71 साल बाद कुंभ में बन रहा है। इस बार इस योग में त्रिवेणी संगम में स्नान, दानपुण्य करने से राहु, केतु, शनि से संबंधित कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इस दिन तीर्थ में स्नान,तप, व्रत और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना माघ मास में स्नान करने से होते हैं। विशेषकर मौनी अमावस्या को किया गया संगम तट पर स्नान का विशेष महत्व का माना गया तथा इस बार तो अर्धकुम्भ का महायोग है। मौनी अमावस्या यह व्रत व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को वश में रखना सिखाता है। शास्त्रों में वाणी को नियंत्रित करने के लिए इस दिन को सबसे शुभ बताया गया है। मौनी अमावस्या को स्नान के बाद मौन व्रत रखकर जाप करने से मन की शुद्धि होती है। कुंभ मेले का शाही स्नान मौनी अमावस्या का भी होता है। इस दिन अमावस्या तिथि सूर्योदय पूर्व से ही लगी हुई है जो पूरे दिन रहेगी। इस दिन श्रवण नक्षत्र एवं सोमवार होने से यह तिथि महापर्व बन गया है । शास्त्रों के अनुसार कुंभ आरंभ होने की मूल तिथि भी यही है। इसमें स्नान करने से मनुष्य पूर्णता की प्राप्ति करता है । वहीं अपने पूर्वजों को स्नान-दान कर मोक्ष की गति दिलाता है। धर्मशास्त्र के मतानुसार इस साल अमावस्या तिथि पर गुरु वृश्चिक राशि और सूर्य मकर राशि में होंगे जो दुर्लभ योग बना रहे हैं इस कारण भी अर्धकुंभ का महत्व अधिक बढ़ जाता है । वास्तव में मौनी अमावस्या पूर्व में जाने अनजाने किए हुए पापों को समाप्त करने एवं मरणोपरांत स्वर्ग प्राप्ति के लिए का सुलभ मार्ग है

पंडित प्रसाद दीक्षित (धर्म-कर्म एवं ज्योतिषशास्त्र सलाहकार)

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